सखी का जाना

 


आज सखी चली गयी !

अक्सर गर्मी की छुट्टी में हम लोग मोतिहारी (बिहार का एक गाँव) जाते, मौसी माँ बिना किसी शिकन, हर सुबह- शाम मेरे लिए अपने चकले - बेलन पे गोल चाँद सी चाशनी में लिपटी रोटियाँ बनाती। मौसी माँ के दिन की शुरुआत चूल्हा जलाने से होती, उनके पूस के घर से हर सुबह धुआँ निकलता, बिलकुल जैसे किसी पेंटिंग में हो। मौसी धीरे धीरे चूल्हा फूँकती, चाय चढ़ा अपनी टास आवाज़ में पुकारती “ ऐ सखी लोगन आवा हेने, अब बोले के कैसे कैसे का का भईल”(ऐ  सखी इधर आओ, अब बताओ कैसे कैसे, क्या  क्या हुआ )। मौसी हम तीनो बहनो को और हम मौसी को सखी बुलाते। उनकी  हँसी और आवाज़ दोनो हमेशा बुलंद थे। 

मौसा जी का गुज़रना मुझे धुंधला सा याद है, वो सफ़ेद कुर्ता पहन, पान खाते और अपने कंधे पे बिठा कर गाते “हाथी घोड़ा पालकी जय कनहिया लाल की”। मौसी अपनी सारी उम्र मौसा के पेन्शन पे चली, पर उस पूस के घर में भी वो मुझे हंसती हुई और बेफ़िक्र जीती याद है। उनके हाथ का आलू चॉप , चटनी, आलू परवल और गोभी की सब्ज़ी खा कर सब उँगलिया  चाटते  ।

मौसी ने तीन बेटों को अकेले बड़ा किया, पापा और माँ ने हमेशा उनका साथ देते। मुझे याद है माँ का हर वक्त मौसी की फ़िक्र करना। माँ को जब भी ज़रूरत होती मौसी सब छोड़ कर आजाती, बिना कुछ सोचे, महीनो हमारे साथ रहती, हम तीनो बहनो की देख भाल करती, खाना बना कर स्कूल के लिए तैयार कर, लंच पैक कर स्कूल भेजती। 

तीनो भईया(मौसी के बेटों ) ने बहुत मेहनत की, एक भईया मोतिहारी में वार्ड कमिशनर भी बने। मौसी के घर के हालात सुधरे। धीरे धीरे पूस के घर से पक्के के ईंट वाले घर में गयी मौसी। आस पड़ोस के लोग उनके साथ घर के बाहर दरवाजे पे बैठ कर घंटो चाय पे गप करते। भईया जिस वार्ड के कमिशनर थे वो कुछ साल बाद महिलाओ के लिए आरक्षित दिया गया। मौसी ने इलेक्शन लड़ा और  वार्ड कमिशनर बनी। उन्हें मीटिंग्स में जाना पसंद नहीं था क्यूँकि वहाँ  ए ॰सी॰ चलता और ढंग की चाय नहीं मिलती। भैया ही सारी मीटिंग्स अटेंड करते ओर मौसी साइन किया करती। पढ़ना लिखना पसंद नहीं था उन्हें पर खाना बनाने और  क़िस्सा गढ़ने की मास्टर थी वो ।

मेरी क़िस्सागो  चली गयी, मेरी सखी चली गयी।कोविड निगल गया उन्हें। माँ मिल भी नहीं पायी उनसे। अपनी बहन से जाते समय ना मिलने का दुःख कैसे झेल रहा होगा माँ का कलेजा। मौसी के गुलज़ार ,ठहाकों से गूंजते घर के बाहर शांति और अंधेरा दिख रहा है। शाम का दिया कौन जलाएगा, हमारे घर और पड़ोसियों की शादी में तेज, टास आवाज़ में अब गाना कौन गाएगा, झटपट आलू चाप ओर चटनिया कौन बनाएगा , रेडीओ पे सुबह सुबह गाने कौन चलएगा और माँ को बिना किसी शर्त के हमेशा कौन प्यार करेगा। 

(Diary entry 05/07/2020))

      


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