नीले फूल और मुसाफिर

सुना है आज कल नीले फूल और मुसाफिर के किस्से सुनाते हो तुम,
तुम्हारी हँसी के ठहाको से सारे गलियारे और रोशनदान भर जाते थे
हमेशा मिठाई के एक टुकड़े से बात शुरू होती और गुड के डिब्बे के खाली होने पे ख़त्म
पान की गिल्लौरी खाते हीं  “इधर आओ बिटिया बताये”, बोल मुस्कारते 
जब तुम्हारी ठंडी त्वचा को आखरी बार सहलाया था तो, थोड़ी सी हँसी खुरच के रखने की कोशिश की थी 
सफ़ेद बताशो के साथ भरी दोपहर में दिखे थे
मलमल के कुरते में झूमते आये और गले लगा के बोला अब जाने दो बिटिया 
वही पहाड़,झरना,पुरानी दिल्ली की शाम और पान की गिल्लौरी में मिलते है 



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