नक्काशी
शक्करपारे की महक से घर भर रहा था
ये हर साल तुम्हारे वापस लौटने की आहट देता
तुम आते तो समुन्द्र में नमक सा घुलता मेरा मन
धुप में इन्द्रधनुष सी अचानक दिखती थी मेरी हँसी
तुम्हारे होने की नक्काशी मेरे नब्ज़ में महसूस होती
आज फिर महक, आहट, घुलना, हँसी, नक्काशी साथ है
पर, मेरी काया के सावलेपन में, सिर्फ तुम्हारी परछाई बाकी है
Comments
Post a Comment