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Showing posts from May, 2009

शायद रास्ते

उंगलियों से बेमेल शायद थे वो रास्ते....... बेमेल गिरहो में पनपते शायद थे वो रास्ते....... पत्थरों पे काई से फिसलते शायद थे वो रास्ते ,,,,,, ओस की बूँद पर धूप की परछाई के साथ सूखते शायद थे वो रास्ते,,,,,,,!!!

ठूठ में जीवन

तिनको से भरी मुट्ठी को लिए बिना चुभन के पृथ्वी की ओर नेह से निहारती....... जब आया वो ,,, तो सुबकती हवाओ को भी जलन हुई थी बर्फ तक जलन से नीर हुए थे और मैं ,,,,,, मैं,,,,,जैसे किसी हरे भरे खेत के बीच ठूठ में जीवन सी शर्मा रही थी,,,!!!

संदूक में सुराख़

कुछ तिनके उठा कुछ बातें समेट कुछ किस्से उठा कुछ ताने समेट कुछ हिस्से चुरा कुछ हिस्से समेट फितूर सी,,,,,,,,,,,,,,इंसानियत.... इंसानों से भागती हाय,,,आज फिर इंसानियत सोच कैद संदूक में इंसानों के फितूर का क्या फितूर का मतलब समझती इंसानियत,,, खारोचती इंसानियत बिलखती इंसानियत गीद्ध का निवाला बनती हमारी इंसानियत,,,,,,,,!! बिखर चुके है तिनके बिखर चुके है किस्से बिखर चुके हैं हिस्से न जाने कब समेटेगी बातें,ताने,वादे,,,इंसानियत खुरच कर नींद को आई फिर इंसानियत..... न जाने कब पनपेगी..... मन के पेड़ में इंसानियत,,,,,,!!! संदूक में सुराख़ है सोच फिर आजाद है इंसानों के साथ आजाद सी इंसानियत,,,,,,,,,,!!!
अलसाई हुई इन आँखों मैं नींद के टुकड़े चुभते है कल रात जो बूँदें बरसी थी ,,,,,जुल्फों मैं अब उलझी है,,,!!