संदूक में सुराख़

कुछ तिनके उठा
कुछ बातें समेट
कुछ किस्से उठा
कुछ ताने समेट
कुछ हिस्से चुरा
कुछ हिस्से समेट
फितूर सी,,,,,,,,,,,,,,इंसानियत....
इंसानों से भागती हाय,,,आज फिर इंसानियत

सोच कैद संदूक में
इंसानों के फितूर का
क्या फितूर का मतलब समझती इंसानियत,,,

खारोचती इंसानियत
बिलखती इंसानियत
गीद्ध का निवाला बनती
हमारी इंसानियत,,,,,,,,!!

बिखर चुके है तिनके
बिखर चुके है किस्से
बिखर चुके हैं हिस्से
न जाने कब समेटेगी
बातें,ताने,वादे,,,इंसानियत

खुरच कर नींद को आई
फिर इंसानियत.....
न जाने कब पनपेगी.....
मन के पेड़ में इंसानियत,,,,,,!!!

संदूक में सुराख़ है
सोच फिर आजाद है
इंसानों के साथ आजाद सी इंसानियत,,,,,,,,,,!!!

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