ठूठ में जीवन

तिनको से भरी मुट्ठी को लिए
बिना चुभन के
पृथ्वी की ओर नेह से निहारती.......
जब आया वो ,,,
तो सुबकती हवाओ को भी जलन हुई थी
बर्फ तक जलन से नीर हुए थे

और मैं ,,,,,,
मैं,,,,,जैसे किसी हरे भरे खेत के बीच ठूठ
में जीवन सी शर्मा रही थी,,,!!!

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