भ्रमण

काठ के चर्कुठ बक्से मे बंद 
ले जा रहे थे मेरा शरीर,
आत्मा भ्रमण पर निकली,
सोच ने  हठ किया साथ जाने का,
समझाया तो, मुह फुला, कोने मे मुट्ठी सी सिमट गयी.
स्वार्थी हो गयी हूँ मैं,
तू चली गयी तो मरे हुए जानवर के बदबू सा होगा मेरा आस्तित्व


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