चुप

वक्त रेत की तरह चुपचाप
बिना किसी कलरव के
फिसल रहा था
मेरी उगलियों के गहो से,
इतना खामोश था वो
की झींगुर की आवाज़ भी गुम गई
उसके सन्नाटे में,
कब्र के ऊपर उगे घास की तरह
चुप,
किसी धधकती हुई चिता की राख की तरह
चुप,
शेर की मान्द की तरह
चुप,
जन्म के बाद प्राण की तरह
चुप,
ना जाने किस सांझ के बिना
चुप,
किसी औघड के की तरह
चुप,
किसी के पदचाप के बिना
चुप ,ठिठुरता











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